लेखक:
निदा फाजली
निदा फाज़ली जन्म : दिल्ली
प्रकाशन : उर्दू में तीन कविता संग्रह 'लफ़्ज़ों का पुल', 'मोर नाच', 'आँख और ख्वाब के दरमियाँ' के साथ एक आलोचना की पुस्तक 'मुलाकातें' और एक उपन्यास ‘दीवारों के बीच' प्रकाशित। हिन्दी में ‘मोर नाच’, ’ और ‘दीवारों के बीच' प्रकाशित । पुरस्कार : खुसरो पुरस्कार (म. प्र.); मारवाड़ कला संगम (जोधपुर), पंजाब ऐसोसिएशन (मद्रास); कला अकादेमी (महाराष्ट्र), उर्दू अकादेमी (बिहार), उर्दू अकादेमी (उ. प्र.)। देश-विदेश की कई भाषाओं में अनुवाद, कई स्कूलकॉलेज की पाठ्य-पुस्तकों में शामिल। आजकल : फिल्म तथा टीवी से सम्बद्ध । सम्पर्क : 108, अमर अपार्टमेण्ट, खार डाँडा रोड, बम्बई-52। निदा फाज़ली-उर्दू नयी शायरी का एक प्रतिष्ठित और लोकप्रिय नाम-जिनकी चर्चा के बगैर उर्दू की जदीद शायरी की कोई चर्चा मुकम्मल नहीं होती। गज़ल हो या नज्म, गीत हो या दोहे हर विधा में रचनाकार निदा फाज़ली अपनी सोच, शिल्प और अन्दाज़े-बयाँ में दूसरों से अलग ही दिखाई नहीं देते, पूरी उर्दू शायरी में अकेले नज़र आते हैं । निदा फाज़ली की एक पहचान उनकी वह सरल सहज ज़मीनी भाषा है, जिसमें अमीर खुसरो, और कुल कुतुबशाह की तरह उर्दू-हिन्दी का फर्क समाप्त हो जाता है। यही कारण है इनकी रचनाएँ, दोनों लिपियों में बिना किसी रद्दो-बदल के प्रकाशित होती हैं, और प्रेम-सम्मान के साथ पढ़ी जाती हैं । 'खोया हुआ सा कुछ देवनागरी में उनका दूसरा संकलन है। पहला संकलन ‘मोर नाच' के नाम से प्रकाशित होकर काफी लोकप्रिय हो चुका है ! निदा फाज़ली आधुनिक शायर हैं। लेकिन उनकी आधुनिकता पाठकों और श्रोताओं से कभी दूर नहीं होती। ये शायरी, ‘मीर' के शब्दों में, ‘अवाम’ और ‘खवास' दोनों में पसन्द की जाती ! निदा फाज़ली की शायरी एक कोलाज़ के समान है। इसके कई रंग और कई रूप हैं। किसी एक रुख से इसकी शिनाख्त मुमकिन नहीं। उन्होंने ज़िन्दगी के साथ कई दिशाओं में सफ़र किया है। उनकी कविताएं इसी सफ़र की दास्तान है। जिसमें कहीं धूप है कहीं छाँव है-कहीं शहर है कहीं गाँव है। इसमें घर, रिश्ते, प्रकृति, और समय अलग-अलग किरदारों के रूप में एक ही कहानी सुनाते हैं "एक ऐसे बंजारा मिज़ाज शख्स की कहानी-जो देश के विभाजन से अब तक अपनी ही तलाश में भटक रहा है। बँटी हुई सरहदों में जुड़े हुए आदमी की यह तलाश रचनाकार निदा फाज़ली का निजी दर्द भी है और यही उनकी शायरी की ताक़त भी है। उन्होंने करनी और ‘कथनी' की दूरी को अपने शब्दों से कम किया है और वही लिखा है जो जिया है। इसकी तासीर का राज़ भी यही है। वो सूफी का कौल हो या पण्डित का ज्ञान जितनी बीते आप पर, उतना ही सच मान। निदा फाज़ली के कई शे'र और दोहे हमारी बोलचाल के मुहावरे बन चुके हैं। ये एक ऐसी विशेषता है जो उन्हीं का हिस्सा है। |
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